Monday 25 July 2011

मेरी मां..

मेरा नाम विनोद रावल है,
ये मेरा पहला हि ब्लोग है,
इसको में अपनी मम्मी को समर्पीत कर रहा..हूं
मैने आज़ से पहले कभी कुछ् नही लिखा है.
इसलिये लिखने में गलती हो जाये तो माफ करना..


मां ऐसी होती है, मां वेसी होती है
मां सुबह होती है, मां शाम होती है,

मां तानसेन की तान होती है,
मां अलादीन का चिराग होती है,

मां गालीब की गजल होती है,
मीरा के भजन होती है,
मां कबीर के दोहे होती है,

मां हिन्दु की पुजा होती है,
मुस्लीम की नमाज होती है,

मां सुरज की तपिश होती है,
चान्द की ठंडक होती है,

मां अमीर की दोलत होती है,
मां गरीब की रोटी होती है,

मां अन्धे को आंख होती है,
बहरे को मां, कान होती है,

मां फुलो की खुश्बु होती है,
मां पैडो पे लदे फल होती है,

मां देश की शान होती है ,
मां दिल से देखो भगवान होती है ...!!!!!

Wednesday 6 July 2011

मतदान

आज हर दुसरा व्यक्ती सिस्टम को दोश दे रहा है , पर क्या इस बिगडे सिस्टम के हम सब जिम्मेदार नही है..?
आज हम भ्रष्टाचार से परेशान है, पर क्या इस भ्रष्टाचार को पनपने में हमारा कूछ भी हाथ नही है..?
जाने अंजाने हम सब रिसश्वत देते ही रहते है, जिस दिन मतदान होना होता है, हम एक दिन का अगोषीत राष्ट्रिय अवकाश मनाते है,
अगर हमने अपने मतदान का सदुप्योग किया होता तो आज़ ये दिन देखना नही पडता..
अगर हमने इन नेताओ को अपना अमूल्य वोट देकर संसद भवन में भेजा होता तो हमारा भी हक़ था इनको गालिया देने का..
पर ये तो हमारा वोट खरीद के यहा पे आये है,
और जब इन्होने हमारे वोट की किमत चुकाई है, तो अब इनका भी हक बनता है, हमारे वोट की किमत वसुलने का..

और तब तक हमारा भी कोई हक नही है इन नेताओ को गालीया देने का, जब तक हम अपना वोट उनको मुफ्त में नही दे देते..
और जिस दिन कोई व्यक्ती एक भी पैसा खर्च किये बिना हमारे देश का मंत्री और प्रधानमंत्री बन जायेंगा उस दिन सच में मेरा भारत महान हो जायेंगा....!!!!!!

Tuesday 28 June 2011

एक और क्रान्ती

अब तो सरकार भी समझ गयी है कि आज़ के नोजवान कुछ भी नही करेंगे
ज्यादा से ज्यादा वो फेसबूक या ट्विटर पे नारे लगा देंगे
आज़ से ५ साल पहले तक हमको भी विद्रोह करना आता था...
हम अपनी बात मनवाने के लिये हडताल करते थे, सरकार कि ईट से ईट बजा देते थे..
अगर सच में इन काले अंग्रेजो को देश से भगाना है,
तो हम सबको रोड पे आना हि पडेंगा ...
ईट से ईट बजानी पडेंगी सरकार कि..
नही तो सिर्फ और सिर्फ १८५७ की क्रान्ती बन के रह जायेंगी , ये क्रान्ती भी...
जिसमे हमको शहीद तो बहुत मिलेंगे, पर शायद आजादी ना मिले..
अब तो है हमारे पास बाबा रामदेवजी और अन्ना साहेब हजारे जेसे नायक भी है , पर इनको भी खो दिया तो शायद ओर १०० साल इन्तजार करना पडेंगा आज़ादी के लिये...!!

आपका
विनोद केशरीमलजी रावल